देवशयनी एकादशी आज, 10 जुलाई रविवार को। इस दिन के पीछे की किवंदती, पूजा विधि को जानने के लिए पढ़िए पूरा लेख

देहरादून । अमर उजियारा ज्योतिष एवं संस्कृति डेस्क । आचार्य चण्डी प्रसाद घिल्डियाल की कलम

आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को देवशयनी एकादशी, हरिशयनी एकादशी और पद्मनाभा एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह समय भगवान विष्णु के शयन का होता है। इस समय भगवान विष्णु चार महीने के लिए निद्रा में चले जाते हैं।

उत्तराखंड ज्योतिष रत्न एवं संस्कृत शिक्षा के सहायक निदेशक आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल बताते हैं कि इस एकादशी के बाद से चार महीने के लिए भगवान विष्णु शयन में चले जाते हैं। चार महीने की इस अवधि को चतुर्मास कहते हैं।

आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। देवशयनी एकादशी के दिन से ही भगवान विष्णु शयनकाल में चले जाते हैं इसलिए इसे देवशयनी एकादशी कहते हैं। देवशयनी एकादशी को पद्मा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है इस एकादशी के बाद से चार महीने के लिए भगवान विष्णु निद्रा में चले जाते हैं. चार महीने की इस अवधि को चतुर्मास कहते हैं। इस दौरान कोई शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।

देवशयनी एकादशी की डेट, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

ज्योतिष जगत के चमकते नक्षत्र कहलाने वाले आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल बताते हैं कि-

देवशयनी एकादशी आज रविवार, जुलाई 10, 2022 को पढ़ रही है।

एकादशी तिथि प्रारम्भ – जुलाई 09, 2022 को शाम 04 बजकर 39 मिनट पर शुरू

एकादशी तिथि समाप्त – जुलाई 10, 2022 को शाम 02 बजकर 13 मिनट पर खत्म

पारण का समय- 11 जुलाई 2022 को सुबह 05 बजकर 56 मिनट से 08 बजकर 36 मिनट तक

देवशयनी एकादशी पूजा विधि

इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके साफ कपड़े पहन लें।इसके बाद पूजा वाली जगह की अच्छी तरह से सफाई कर लें।इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा या मूर्ति स्थापित करें।भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला प्रसाद और पीला चंदन अर्पित करें।

  • इसके बाद भगवान विष्णु को पान, सुपारी चढ़ाएं।
  • फिर भगवान विष्णु के आगे दीप जलाएं और पूजा करें।
  • देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के इस मंत्र ‘‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्. विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्..” का जाप जरूर करें.
  • देवशयनी एकादशी के दिन पहले भगवान विष्णु को शयन कराएं उसके बाद ही खुद सोएं।

देवशयनी एकादशी पौराणिक महत्व

श्रीमद् भागवत कथा व्यास के रूप में व्यास गद्दी पर आसीन होने वाले आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल बताते हैं कि-

पौराणिककथा के मुताबिक, बहुत समय पहले मान्धाता नाम का एक राजा था. राजा काफी अच्छा और नेक दिल था जिस कारण उसकी प्रजा हमेशा उससे काफी खुश और सुखी रहती थी। एक बार, राज्य में 3 साल तक बारिश नहीं पड़ी। इससे राज्य में अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गयी। जो प्रजा पहले खुश रहा करती थी वो अब निराश और दुखी रहने लग गई।

अपनी प्रजा का ये हाल देखकर राजा ने अपनी प्रजा को इस दुःख से निकालने का उपाय निकालने के लिए जंगल में जाना उचित समझा। जंगल में जाते-जाते राजा अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुँच गया। ऋषि ने राजा से उनकी परेशानी की वजह पूछी तो राजा से सारा दुःख ऋषि के सामने जाहिर कर दिया। तब ऋषि ने राजा को आषाढ़ी एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी।

ऋषि की बात मानकर राजा वापिस अपने राज्य लौट आया और अपनी प्रजा से इस व्रत को निष्ठापूर्ण करने की सलाह दी। व्रत और पूजा के प्रभाव का असर कुछ ऐसा हुआ कि राज्य में एक बार फिर से वर्षा हुई जिससे पूरा राज्य एक बार फिर धन-धान्य से पूर्ण हो गया।

आचार्य का परिचय
नाम-आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल
पब्लिक सर्विस कमीशन उत्तराखंड से चयनित प्रवक्ता वर्तमान में सहायक निदेशक शिक्षा विभाग उत्तराखंड सरकार
निवास स्थान- 56 / 1 धर्मपुर देहरादून, उत्तराखंड।
मोबाइल नंबर-9411153845

उपलब्धियां
वर्ष 2015 में शिक्षा विभाग में प्रथम गवर्नर अवार्ड से सम्मानित वर्ष 2016 में लगातार सटीक भविष्यवाणियां करने पर उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उत्तराखंड ज्योतिष रत्न सम्मान से सम्मानित किया वर्ष 2017 में त्रिवेंद्र सरकार ने दिया ज्योतिष विभूषण सम्मान। वर्ष 2013 में केदारनाथ आपदा की सबसे पहले भविष्यवाणी की थी। इसलिए 2015 से 2018 तक लगातार एक्सीलेंस अवार्ड प्राप्त हुआ शिक्षा एवं ज्योतिष क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्यों के लिए 5 सितंबर 2020 को प्रथम वर्चुअल टीचर्स राष्ट्रीय अवार्ड प्राप्त किया। मंत्रों की ध्वनि को यंत्रों में परिवर्तित कर लोगों की समस्त समस्याओं का हल करने की वजह से वर्ष 2019 में अमर उजाला की ओर से आयोजित ज्योतिष महासम्मेलन में ग्राफिक एरा में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दिया ज्योतिष वैज्ञानिक सम्मान।

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