चैत्र नवरात्रि के साथ हिंदू नव संवत्सर की शुरुआत 2 अप्रैल से
- चैत्र नवरात्रि के साथ हिंदू नव संवत्सर की शुरुआत 2 अप्रैल से
- मां दुर्गा के घोड़े की सवारी में आना और भैंसे की सवारी में विदा होना आम जनमानस के लिए ठीक नहीं है
देहरादून / ऋषिकेश । अमर उजियारा एक्सक्लूसिव । आचार्य चंडी प्रसाद घिल्डियाल की कलम
2 अप्रैल 2022 शनिवार से चैत्र नवरात्रि के साथ हिंदू नव वर्ष की शुरुआत नव संवत्सर के साथ हो जाएगी इस संदर्भ में उत्तराखंड ज्योतिष रत्न आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल का कहना है कि-
चैत्र के महीने में इस नवरात्रि के पड़ने के कारण इसे चैत्र नवरात्रि कहा जाता है। इस दौरान विधि-विधान से मां दुर्गा के अलग-अलग नौ रूपों की पूजा की जाती है। चैत्रनवरात्रि के नौ दिनों का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। नवरात्रि के नौ दिनों में प्रत्येक दिन मां दुर्गा के अलग-अलग नौ रूपों की पूजा की जाती है। इस दौरान विधि-विधान से मां दुर्गा के अलग-अलग नौ रूपों की नौ दिनों में पूजा की जाती है। नवरात्रि में बहुत लोग व्रत-उपवास भी रखते हैं। अपनी इच्छा और सामर्थ्य के अनुसार भक्त नौ दिनों का फलाहार या एक समय सेंधा नमक वाला भोजन खा कर देवी दुर्गा की अराधना करते हैं।
इस बार चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 2 अप्रैल से हो रही है और और 11 अप्रैल 2022, दिन सोमवार को नवरात्रि का समापन होगा।
घटस्थापना का शुभ मुहूर्त – शनिवार, दो अप्रैल 2022 को
ज्योतिष में बड़े हस्ताक्षर आचार्य चंडी प्रसाद घिल्डियाल बताते हैं कि यद्यपि ब्रह्म मुहूर्त किसी भी शुभ कार्य के लिए सर्वोत्तम होता है। परंतु विशेष रूप से एक घंटा स्थापन के लिए- 06:10 सुबह से 08:31 सुबह
अवधि – 02 घण्टे 21 मिनट्स
घटस्थापना अभिजित मुहूर्त – 12:00 दोपहर से 12:50 दोपहर तक
अवधि – 00 घण्टे 50 मिनट्स
घटस्थापना मुहूर्त प्रतिपदा तिथि पर है।
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 01, 2022 को 11:53 बजे सुबह से
प्रतिपदा तिथि समाप्त – अप्रैल 02, 2022 को 11:58 बजे सुबह तक
चैत्र नवरात्रि कलश स्थापना विधि
चैत्र नवरात्रि के लिए कलश स्थापना करने जा रहे हैं तो पहले कलश स्थापना की विधि जान लें-
कलश स्थापना नवरात्रि के पहले दिन की जाती है। कलश स्थापना के लिए मिट्टी के बर्तन (कलश), पवित्र स्थान से लाई गई मिट्टी या बालू, गंगाजल, सुपारी, चावल, नारियल, लाल धागा, लाल कपड़ा, आम या अशोक के पत्ते,और फूल की जरूर होती है।
- कलश स्थापना से पहले अपने घर के मंदिर को अच्छी तरह साफ कर लें और लाल कपड़ा बिछा दें।
- अब इस कपड़े पर कुछ चावल रख दें।
- जौ को मिट्टी के चौड़े बर्तन में बो दें।
- अब इस पर पानी से भरा कलश रखें।
- कलश पर कलावा बांधें।
- साथ ही कलश में सुपारी, एक सिक्का और अक्षत डाल दें।
- कलश में आम या अशोक के पांच पत्ते रखें।
- कलश के ऊपर लाल चुनरी में लपेटा हुआ नारियल रखें।
आचार्य का परिचय
नाम-आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल
पब्लिक सर्विस कमीशन उत्तराखंड से चयनित प्रवक्ता संस्कृत।
निवास स्थान- 56 / 1 धर्मपुर देहरादून, उत्तराखंड। कैंप कार्यालय मकान नंबर सी 800 आईडीपीएल कॉलोनी वीरभद्र ऋषिकेश
मोबाइल नंबर-9411153845
उपलब्धियां
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वर्ष 2015 में शिक्षा विभाग में प्रथम गवर्नर अवार्ड से सम्मानित वर्ष 2016 में लगातार सटीक भविष्यवाणियां करने पर उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उत्तराखंड ज्योतिष रत्न सम्मान से सम्मानित किया वर्ष 2017 में त्रिवेंद्र सरकार ने दिया ज्योतिष विभूषण सम्मान। वर्ष 2013 में केदारनाथ आपदा की सबसे पहले भविष्यवाणी की थी। इसलिए 2015 से 2018 तक लगातार एक्सीलेंस अवार्ड प्राप्त हुआ शिक्षा एवं ज्योतिष क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्यों के लिए 5 सितंबर 2020 को प्रथम वर्चुअल टीचर्स राष्ट्रीय अवार्ड प्राप्त किया। मंत्रों की ध्वनि को यंत्रों में परिवर्तित कर लोगों की समस्त समस्याओं का हल करने की वजह से वर्ष 2019 में अमर उजाला की ओर से आयोजित ज्योतिष महासम्मेलन में ग्राफिक एरा में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दिया ज्योतिष वैज्ञानिक सम्मान।