उत्तराखंड में दीपावली 21 अक्टूबर को मनाना शास्त्रसम्मत: ज्योतिष रत्न डॉ. चंडी प्रसाद घिल्डियाल “दैवज्ञ”

देहरादून। दीपावली 2025 की तिथि को लेकर देशभर में मंथन और चर्चा के बीच आखिरकार उत्तराखंड ज्योतिष रत्न आचार्य डॉ. चंडी प्रसाद घिल्डियाल “दैवज्ञ” ने अपना बहुप्रतीक्षित और निर्णायक बयान जारी किया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि भारत के विभिन्न भागों में अक्षांश और देशांतर के अंतर के कारण पर्वों की तिथि में भिन्नता स्वाभाविक है। इसी कारण जहां देश के पूर्वी हिस्सों में दीपावली 20 अक्टूबर को मनाई जाएगी, वहीं उत्तराखंड में इसे 21 अक्टूबर को मनाना ही धर्मशास्त्र और ज्योतिष शास्त्र दोनों के अनुसार उचित है।

डॉ. घिल्डियाल के अनुसार, काशी विद्वत परिषद ने स्थानीय काल गणना के आधार पर 20 अक्टूबर को दीपावली मनाने का निर्णय लिया है। जबकि अन्य राज्यों की परिषदों ने अपनी भौगोलिक स्थिति के अनुसार 20 या 21 अक्टूबर की तिथि तय की है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में गढ़वाल और कुमाऊं मंडल के पंचांग अक्षांश 26°30′ से 29°30′ के आधार पर बनते हैं, जिनमें रेलवे समय से 10 से 18 मिनट का अंतर रहता है, इस कारण यहां पर्व निर्णय अलग होता है।

उन्होंने बताया कि इस वर्ष 2025 में 20 और 21 अक्टूबर दोनों दिन अमावस्या तिथि रहेगी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि लक्ष्मी पूजन कब किया जाए? इसका उत्तर धर्मशास्त्र में स्पष्ट है — महालक्ष्मी पूजन प्रदोष काल की अमावस्या या निशीथ काल में किया जाना श्रेष्ठ माना गया है।

धर्मशास्त्रीय निर्णय के अनुसार

डॉ. घिल्डियाल ने निर्णयसिंधु और धर्मसिन्धु का हवाला देते हुए बताया कि देशभर के अधिकांश पंचांगों के अनुसार 20 अक्टूबर की चतुर्दशी तिथि अपराह्न 3:45 बजे समाप्त होगी और उसके बाद से अमावस्या तिथि प्रदोष काल से लेकर अगले दिन शाम 5:55 तक रहेगी। सूर्यास्त 5:35 बजे होने के कारण दोनों दिन प्रदोष काल में अमावस्या रहेगी, परंतु 21 अक्टूबर की अमावस्या प्रदोष काल और निशीथ काल दोनों को व्याप्त करती है, इसलिए यह पूजन के लिए अधिक श्रेष्ठ है।

उन्होंने कहा—

“प्रदोषसमये लक्ष्मीं पूजयित्वा ततः क्रमात्, दीपवृक्षाश्च दातव्या: शक्त्या देवगृहेषु च।”

अर्थात् प्रदोष समय में लक्ष्मी पूजन तथा दीपदान करने से परम फल प्राप्त होता है।

डॉ. घिल्डियाल ने आगे कहा कि जब दोनों दिनों में प्रदोष काल में अमावस्या पड़ती है, तब ‘पर’ अर्थात बाद की तिथि को मानना शास्त्रसम्मत होता है। इस वर्ष ऐसी स्थिति में 21 अक्टूबर की अमावस्या ही प्रदोष व्यापिनी और निशीथ काल तक रहने वाली है।

उत्तराखंड ज्योतिष रत्न आचार्य डॉ. चंडी प्रसाद घिल्डियाल “दैवज्ञ” ने कहा कि पूर्वी उत्तर प्रदेश सहित देश के अन्य हिस्सों में 20 अक्टूबर को दीपावली मनाना उचित है, वहीं गढ़वाल-कुमाऊं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 21 अक्टूबर को महालक्ष्मी पूजन और दीपोत्सव मनाना धर्मशास्त्र और कालगणना दोनों के अनुसार शुद्ध व प्रमाणिक है।

इस प्रकार 20 अक्टूबर को छोटी दीपावली और 21 अक्टूबर को महालक्ष्मी पूजन एवं दीपोत्सव उत्तराखंड में शास्त्रसम्मत रूप से मनाया जाएगा।