गुरुवार से शुरू हो रहे हैं शारदीय नवरात्र, मां दुर्गा आ रही है डोली से

– शारदीय नवरात्रि 7 अक्टूबर से, गुरुवार से शुरू हो रहे हैं नवरात्र

– मां दुर्गा आ रही है डोली से

– भक्तों की होंगी सभी मनोकामनाएं पूर्ण

ऋषिकेश/देहरादून । अमर उजियारा एक्सक्लूसिव समाचार

इस वर्ष नवरात्रि 7 अक्टूबर से प्रारंभ हो रही है जो 15 अक्टूबर को पूर्ण होंगे गुरुवार से प्रारंभ और शुक्रवार को पूर्ण होने की वजह से मां दुर्गा डोली से पधार रही हैं जो श्रद्धा पूर्वक भक्ति करेंगे उन भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।

उत्तराखंड ज्योतिष रत्न आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल बताते हैं कि नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की उपासना की जाती है।

इस बार आठ दिन के नवरात्रि में मां भगवती डोली पर सवार होकर पधारेंगी। गुरुवार प्रारंभ और शुक्रवार को पूर्ण हो रहा हो नवरात्रि तो मां डोली पर सवार होकर आती हैं। विशेष बात यह है कि इस वर्ष नवरात्रि आठ दिन के ही होंगे।

नवरात्र की तिथियों का घटना व श्राद्ध की तिथियों का बढ़ना अशुभ है।

इस वर्ष यद्यपि श्राद्ध की तिथि भी घट गई थी परंतु नवरात्र की तिथि भी घट रही है इसलिए पूरे देश और विश्व के लिए वर्ष सामान्य रहेगा तृतीया और चतुर्थी दोनों एक ही दिन है। नौ अक्तूबर शनिवार को प्रात: 7.48 बजे तक तृतीया है बाद में चतुर्थी प्रारंभ हो जाएगी। 15 अक्तूबर को दोपहर में दशमी है। इसलिए दशहरा पूजन शुक्रवार को मनाया जाएगा। चित्रा नक्षत्र व वैधृति योग के चलते घट स्थापना ब्रह्ममुहूर्त अथवा अभिजीत मुहूर्त में ही शुभ रहेगा।

शारदीय नवरात्रि 2021 का शुभ मुहूर्त

प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ: 6 अक्टूबर शाम 4 बजकर 35 मिनट से शुरू

प्रतिपदा तिथि समाप्त: 7 अक्टूबर दोपहर 1 बजकर 46 मिनट तक

घटस्थापना का मुहूर्त

राज्य लोक सेवा आयोग से चयनित संस्कृत प्रवक्ता डॉक्टर चंडी प्रसाद के अनुसार 7 अक्टूबर को घटस्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 17 मिनट से सुबह 7 बजकर 7 मिनट तक का है।

शारदीय नवरात्रि 2021 तिथियां

7 अक्टूबर- मां शैलपुत्री की पूजा गुरुवार, प्रतिपदा तिथि व चित्रा नक्षत्र:- इस दिन मां शैलपुत्री के रूप में दो वर्ष की कन्या का गाय के घी से निर्मित हलवा व मालपूए का भोग लगाए। और मां दुर्गा को गुड़हल के फूल चढ़ाएं।

8 अक्टूबर- मां ब्रह्मचारिणी की पूजा शुक्रवार, द्वितीया तिथि स्वाति नक्षत्र:- विजय प्राप्ति व सर्वकार्य सिद्धि के लिए तीन वर्ष की कन्या का मां ब्रह्मचारिणी के रूप में पूजा कर मिश्री व शक्कर ने बने पदार्थ का भोग लगाए। लाल गुलाब के फूल चढ़ाएं।

9 अक्टूबर- मां चंद्रघंटा व मां कुष्मांडा की पूजा तृतीया व चतुर्थी तिथि शनिवार विशाखा/अनुराधा नक्षत्र:-दुखों के नाश व सांसारिक कष्टों से मुक्ति के लिए चार व पांच वर्ष की कन्या का मां चंद्रघंटा/कुष्मांडा के रूप में पूजन कर दूध से निर्मित पदार्थों व मालपुए का भोग अर्पित करें। गेंदे के फूल अर्पित करें।

10 अक्टूबर- मां स्कंदमाता की पूजा रविवार पंचमी तिथि व अनुराधा नक्षत्र:- विद्यार्थियों को परीक्षा में सफलता व मनोकामना पूर्ति के लिए छह वर्ष की कन्या का मां स्कंदमाता के स्वरूप में पूजन कर माखन का भोग लगाएं। गुड़हल के फूलों से पूजन करें।

11 अक्टूबर- मां कात्यायनी की पूजा सोमवार षष्ठी तिथि व ज्येष्ठा नक्षत्र:- चारों पुरुषार्थ व रूप लावण्य की प्राप्ति के लिए सात वर्ष की कन्या का मां कात्यायनी के स्वरूप में पूजन कर मिश्री व शहद का भोग समर्पित करें। लाल गुलाब के फूलों से पूजन करें।

12 अक्टूबर- मां कालरात्रि की पूजा मंगलवार, सप्तमी तिथि व मूल नक्षत्र:- नवग्रह जनित बाधाएं व शत्रुओं के नाश के लिए आठ वर्ष की कन्या का मां कालरात्रि के स्वरूप में पूजा अर्चना कर दाख, गुड़ व शक्कर का नैवेद्य अर्पित करें। विभिन्न किस्म के फूलों से पूजन करें।

13 अक्टूबर- मां महागौरी की पूजा बुधवार अष्टमी तिथि व पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र:- नौ वर्ष की कन्या का महागौरी स्वरूप में पूजन कर गाय के घी से निर्मित पदार्थ व श्रीफल का भोग लगाये। व्रत लेने वाले कच्चे नारियल का सेवन बिलकुल न करें

14 अक्टूबर- मां सिद्धिदात्री की पूजा गुरुवार, नवमी तिथि व उत्तराषाढ़ा नक्षत्र :- परिवार में सुख समृद्धि, भय नाश व मनोकामना पूर्ति के लिए 10 वर्ष की कन्या का मां सिद्धिदात्री व नवदुर्गा स्वरूप में पूजन कर खीर, हलवा व सूखे मेवे का भोग लगाए।

15 अक्टूबर- दशमी तिथि, विजयादशमी या दशहरा

शारदीय नवरात्रि 2021 घट स्थापना हेतु आवश्यक सामग्री

आचार्य चंडी प्रसाद घिल्डियाल बताते हैं कि नवरात्रि के प्रथम दिन ही घटस्थापना की जाती है। इसे कलश स्थापना भी कहा जाता है। इसके लिए कुछ सामग्रियों की आवश्यकता होती है।

जल से भरा हुआ पीतल, चांदी, तांबा या मिट्टी का कलश
पानी वाला नारियल, रोली या कुमकुम, आम और पीपल के 5 पत्ते नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपड़ा या चुनरी, लाल सूत्र/मौली साबुत सुपारी, साबुत चावल और सिक्के, कलश ढकने के लिए ढक्कन और जौ इत्यादि।

यह है कलश स्थापना की शास्त्रीय विधि

मां दुर्गा की मूर्ति के दाईं तरफ कलश को स्थापित किया जाना चाहिए। जिस स्थान पर कलश स्थापित करना है वहां पर किसी बर्तन के अन्दर मिट्टी भरकर रखें या फिर ऐसे ही जमीन पर मिट्टी का ढेर बनाकर उसे जमा दें। यह मिट्टी का ढेर ऐसे बनाएं कि उस पर कलश रखने के बाद भी कुछ जगह बाकी रह जाए। कलश के ऊपर रोली अथवा कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं। इसके बाद कलश पर मौली बांध दें। इसके बाद कलश में थोड़ा गंगाजल डालें और बाकी शुद्ध पीने के पानी से कलश को भर दें। जल से भरे कलश के अंदर थोड़े से अक्षत (चावल), 2-4 दूर्वा घास, साबुत सुपारी, और 1 या दो रुपये का सिक्का डालकर चारों ओर आम के 4-5 पत्ते लगा दें। फिर मिट्टी या धातु के बने ढक्कन से कलश को ढक दें। इस ढक्कन पर भी स्वास्तिक बनाएं।

इस ढक्कन पर आपको स्वस्तिक बनाना होगा। फिर उस ढक्कन पर थोड़े चावल रखने होंगे। फिर एक नारियल पर लाल रंग की चुनरी लपेटें। इसे तिलक करें और स्वास्तिक बनाएं। नारियल को ढक्कन के ऊपर चावल के ढेर के ऊपर रख दें। नारियल का मुख हमेशा अपनी ओर ही रखे चाहे आप किसी भी दिशा की ओर मुख करके पूजा करते हों। दीपक का मुख पूर्व दिशा की ओर रखें। अगर शारदीय नवरात्र व्रत हो तो कलश के नीचे बची जगह पर अथवा ठीक सामने जौं बोने अच्छे होते हैं।

मंत्रों की ध्वनि को यंत्रों में परिवर्तित कर जन समस्याओं का हल करने की वजह से ज्योतिष वैज्ञानिक सम्मान से सम्मानित आचार्य घिल्डियाल बताते हैं कि नवरात्रि के दौरान पूर्व वैदिक और वैज्ञानिक पद्धति से विभिन्न ग्रहों के यंत्रों को सिद्ध करने से ग्रह पीड़ा दूर हो जाती है।

शारदीय नवरात्रि में कन्या पूजन का विधान

नवरात्रि में व्रत के साथ कन्या पूजन का बहुत महत्व होता है। जो लोग नवरात्रि के 9 दिनों का व्रत रहते हैं या फिर पहले दिन और दुर्गा अष्टमी का व्रत रखते हैं, वे लोग कन्या पूजन करते हैं। कई स्थानों पर कन्या पूजन दुर्गा अष्टमी के दिन होता है और कई स्थानों पर यह महानवमी के दिन होता है। जबकि शास्त्रीय विधान के अनुसार अष्टमी के दिन कन्याओं का पूजन और नवमी के दिन सौभाग्यवती स्त्रियों का पूजन करना चाहिए 01 से लेकर 09 वर्ष की कन्याओं को मां दुर्गा का स्वरुप माना जाता है, इसलिए उनकी पूजा करने का शास्त्रीय विधान है।

श्रीमद् भागवत व्यास पीठ पर विराजमान होने वाले आचार्य चंडी प्रसाद घिल्डियाल विशेष रूप से बताते हैं कि-

जो लोग हरियाली बोते हैं उन्हें कभी भी नवमी के दिन नहीं काटना चाहिए वह रात्रि सिद्धिदात्री की होती है उस रात्रि भी उसका पूजन करना चाहिए और दशमी के दिन 12:00 बजे के लगभग हरियाली का विसर्जन करना चाहिए।

आचार्य का परिचय
नाम-आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल
पब्लिक सर्विस कमीशन उत्तराखंड से चयनित प्रवक्ता संस्कृत।
निवास स्थान- 56 / 1 धर्मपुर देहरादून, उत्तराखंड। कैंप कार्यालय मकान नंबर सी 800 आईडीपीएल कॉलोनी वीरभद्र ऋषिकेश
मोबाइल नंबर-9411153845


उपलब्धियां
वर्ष 2015 में शिक्षा विभाग में प्रथम गवर्नर अवार्ड से सम्मानित वर्ष 2016 में लगातार सटीक भविष्यवाणियां करने पर उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत सरकार ने दी उत्तराखंड ज्योतिष रत्न की मानद उपाधि। त्रिवेंद्र सरकार ने दिया ज्योतिष विभूषण सम्मान। वर्ष 2013 में केदारनाथ आपदा की सबसे पहले भविष्यवाणी की थी। इसलिए 2015 से 2018 तक लगातार एक्सीलेंस अवार्ड प्राप्त हुआ शिक्षा एवं ज्योतिष क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्यों के लिए 5 सितंबर 2020 को प्रथम वर्चुअल टीचर्स राष्ट्रीय अवार्ड प्राप्त किया। मंत्रों की ध्वनि को यंत्रों में परिवर्तित कर लोगों की समस्त समस्याओं का हल करने की वजह से वर्ष 2019 में अमर उजाला की ओर से आयोजित ज्योतिष महासम्मेलन में ग्राफिक एरा में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दिया ज्योतिष वैज्ञानिक सम्मान।

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